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राधास्वामी के कोई गुरु नहीं था 

शिव दयाल जी महाराज के जीवन चरित्र जीवनी में पृष्ठ 79 पर लिखा है कि शिवदयाल जी(उर्फ राधास्वामी) चरण छुआते थे और वर्तमान राधा-स्वामी कहते हैं कि चरण छुआने वाला गुरु नहीं होता इसका मतलब शिवदयाल जी सही गुरु नहीं थे

गुरुवा गाम बिगाडे सन्तो, गुरुवा गाम बिगाडे।
ऐसे कर्म जीव के ला दिए, इब झडे नहीं झाडे

पुस्तक जीवन चरित्र स्वामी जी महाराज के पृष्ठ 27 में लिखा है कि शिवदयाल जी का कोई गुरु नहीं था फिर शिव दयाल जी पार केसे हुए बिना गुरु के राधास्वामी पंथ से जुड़े लोग कहते हैं कि  शिवदयाल जी सच्चखण्ड में चले गए लेकिन गुरु बिना तो पार हो ही नहीं सकते जबकि शिवदयाल जी ने कोई गुरु नहीं बनाया था

कबीर साहेब जी कहते हैं
गुरु बिन माला फेरते गुरु बिन देते दान दोनों ही निष्फल हैं चाहे पूछो वेद पुराण

 इनके पंथ का सिद्धांत है कि परमात्मा निराकार है जबकि सारवचन वार्तिक पृष्ठ 8 वचन 12 में लिखा है कि आत्माएं सतलोक में सतपुरुष का दर्शन करती है यह भी लिखा है कि संत इसी पुरुष का अवतार है तो फिर परमात्मा निराकार कैसे हुए यह केसा ज्ञान है इनका 
जबकि ऋग्वेद मण्डल नं 9 सुक्त 82 मंत्र 1,2 और सुक्त 86 मंत्र 26,27 में प्रमाण है कि परमात्मा साकार, सशरीर और नरवत् है

झूठे गुरू के आसरे, कदै न उधरे जीव।
सांचा पुरुष कबीर है, आदि परम गुरू पीर
जब तब गुरू मिले नहीं सांचा, तब तक गुरू करो दस-पांचा।

गीता अध्याय 4 के श्लोक 34 में गीता ज्ञान दाता कह रहा है कि हे अर्जुन तू उस तत्व ज्ञान को समझने हेतु तत्वदर्शी संत की शरण में जा 

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