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शिवदयाल जी शास्त्रविरूद्ध साधना करते थे, उन्हें शास्त्रों का ज्ञान नहीं था
Published on Feb 2, 2020
श्री शिव दयाल सिंह जी (1861 - 1878) राधास्वामी मत की शिक्षाओं को प्रारंभ करने वाले पहले गुरु थे।
लेकिन इन्होने कोई गुरु धारण नहीं किआ था।
जबकि शास्त्रों में साफ वर्णित है की बिना सतगुरु बनाये किसी की भक्ति सफल नहीं हो सकती।
कबीर जी की वाणी है
"कबीर, गुरू बिन ज्ञान ना उपजै, गुरू बिन मिले ना मोक्ष।
गुरू बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मिटे न दोष।।"
"कबीर, गुरु की आज्ञा आवहि, गुरु की आज्ञा जाय।
कहे कबीर सो संत है आवागमन नशाये।।"
पूर्ण सतगुरु ना मिलने से राधास्वामी पंथ प्रवर्तक शिवदयाल जी ने मनमानी साधना की, राधास्वामी पंथ की पुस्तक-जीवन चरित्र स्वामी जी महाराज में लिखा है कि
श्री शिवदयाल जी ने 17 वर्ष तक बन्द कमरें में हठ योग किया। 5 वर्ष की आयु से शब्द योग के अभ्यास किआ।
जबकी गीता अध्याय 3, श्लोक 6 से 9 तक हठयोग निषेध बताया है।
सिद्ध होता है कि शिवदयाल जी शास्त्रविरूद्ध साधना करते थे, उन्हें शास्त्रों का ज्ञान नहीं था।
गीता जी अध्याय 16 श्लोक 23 के अनुसार जो भी व्यक्ति शास्त्रविधि को त्याग कर मनमाना आचरण करता है उस प्राणी की कभी गती नहीं हो सकती।
जिसके परिणाम वश राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक शिवदयाल जी मृत्यु उपरांत भूत योनी को प्राप्त हुए, वे अपनी शिष्या बुक्की में प्रवेश करके पितरों व भूतों की तरह बोल कर आदेश देते थे अर्थात बुक्की जी के मुख से हुक्का पीते थे तथा उसके अन्तिम स्वांस तक प्रवेश रहे।
सोचीये जिस पंथ का प्रर्वतक ही भूत योनी को प्राप्त हुआ हो, और हुक्का पिता हो, तो उनके अनुयाइयों का क्या बनेगा?
कबीर साहेब जी की वाणी है।
सौ नारी जारी करै, सुरापान सौ बार।
एक चिलम हुक्का भरै, वह डूबै काली धार।।”
राधास्वामी पंथ में काल के 5 नाम/मंत्र दिए जाते है, जिनका हमारे सद्ग्रंथो में कोई साक्ष्य नहीं है।
कबीर जी की वाणी है कि -
सोई गुरु पूरा कहावै, दोय अख्खर का भेद बतावै।
कबीर परमेश्वर की ये उपरोक्त वाणी और गीता जी अध्याय 17 के श्लोक 23 के अनुसार तीन बार में नाम दीक्षा देने का प्रमाण है।
इससे सिद्ध होता है की इस पंथ के पास यथार्थ शास्त्रानुसार ज्ञान नहीं है।
राधास्वामी पंथ की पुस्तक संतमत प्रकाश के पहले भाग पृष्ठ 17 पर लिखा है कि ‘‘वह सतलोक है, उसी को सतनाम कहा जाता है।
इनको सतनाम व् सतलोक का भी कोई ज्ञान नही है की यह क्या चीज़ है।
राधास्वामी पंथ के प्रवक्ता ने "सतनाम" को एक स्थान बताया है लेकिन गुरुग्रन्थ साहेब में नानक जी ने सतनाम को दो अक्षर का मंत्र बताया है।जिसका ज्ञान इस पंथ के गुरुओं को नहीं है।
इस पंथ में परमात्मा को निराकार बताते है लेकिन हमारे सदग्रंथ बताते है कि परमात्मा साकार है, सशरीर है तथा मनुष्य सदृश हैं।