शिवदयाल जी - राधस्वामी पंथ

Supreme Knowledge

राधास्वामी पंथ का उत्थान श्री शिवदयाल जी से माना जाता है।

शिवदयाल जी के माता-पिता तुलसीदास हथरस वाले के भक्त थे।

तुलसीदास हथरस वाले के कोई गुरु नही था।

शिवदयाल जी भी इन्ही तुलसीदास जी के वचन सुना करते थे। परन्तु उन्होंने कोई गुरु धारण नही किया था।

श्री शिवदयाल जी छः वर्ष की आयु में हठयोग क्रिया  करके, सूरत-निरत का ध्यान किया करते थे।

इसी प्रकार वो 15 वर्ष तक यही क्रिया करते रहे।

उन्होंने अपना पहला सत्संग सन 1917 में 42 वर्ष की उम्र में किया।

उनकी पत्नी का नाम भक्तमति नारायणी देवी था जिन्हें बाद में "राधा" कहा जाने लगा था।

उनके वचन आखिरी स. 5 में लिखा है कि अंत समय में सर्व संगत से कहा था कि मेरे बाद "राधा जी" (नारायणी देवी) को मेरे समान समझना।

वचन आखिरी 9-10 में कहा कि गृहस्थी औरतों के लिए "राधा जी" मेरा उत्तराधिकारी है और साधुओं के लिए सनमुख दास को ठहराया।

वचन आखिरी स. 12 में अपने भाई प्रताप सिंह से कहा है कि आप बाग में सत्संग करो और कराओ।

वचन आखिरी स. 14 में कहा है कि मेरा मत तो सतनाम और अनामी था और राधास्वामी मत तो सालगराम का चलाया हुआ है। मेरा है ही नहीं।

उपरोक्त विवरण "सार वचन राधास्वामी" की भूमिका के है।

विवेचन :- 1. अब जानते है राधास्वामी क्या है ?
राधा नाम शिवदयाल जी की पत्नी अर्थात नारायणी देवी का है।
और शिवदयाल जी को उनका स्वामी बोला जाता था।
इसलिए इस पंथ का नाम "राधास्वामी" पड़ा।

2. शिवदयाल जी तुलसीदास हथरस वाले कि वाणिया सुनता था और कबीर जी की वाणिया भी सुनता था।
इन दोनों से और अपने अनुभव(अज्ञान) से सत्संग करता था।

3. शिवदयाल जी का कोई गुरु नही था।

और कबीर साहेब की वाणी में लिखा है कि 

"गुरु बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यो थोथा भूष छड़े मूढ़ किसाना।।"
और गीता अ. 4 श्लोक 34 में कहा है कि परमेश्वर की जानकारी तत्त्वदर्शी सन्त प्रदान करता है जो शिवदयाल जी को मिले नही।

4. स्वामी जी हठयोग किया करते थे। 2-3 दिन तक खुद को एक कमरे में बन्द करके हठयोग करते थे जो लगभग 15 साल तक किया।
लेकिन हठयोग किसी भी ज्ञानी पुरुष की जीवनी में नही है और गीता अ. 3 श्लोक 6से 9 तक हठयोग के लिए मना कर रखा है।

5. राधास्वामी पंथ सालगराम का चलाया हुआ है जिसकी आज्ञा शिवदयाल जी ने नही दी थी।
मतलब "राधास्वामी" पंथ बिना गुरु की आज्ञा के चलाया हुआ है।

अब इस पंथ से नाम लेने वालों को क्या फायदा होगा जिसके प्रवर्तक का कोई गुरु नही था जिसे शास्त्रों का सही से ज्ञान नही है।

 

राधास्वामी पंथ शहर आगरा, पन्नी गली निवासी श्री शिवदयाल सिंह जी से चला है। राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक श्री शिवदयाल जी का कोई गुरु नहीं था। 

प्रमाण: पुस्तक "जीवन चरित्र स्वामी जी महाराज" के पृष्ठ 28 पर कृपया देखें..

श्री शिव दयाल सिंह जी ने 17 वर्ष तक बंद स्थान पर बैठकर हठयोग किया। जो किसी भी संत की साधना से मेल नहीं खाता। उन्होंने सन 1861 में सत्संग करना प्रारंभ किया सन 1856 में बाबा जयमल सिंह जी ने श्री शिवदयाल जी से उपदेश (नाम प्राप्त) लिया। 

इससे सिद्ध हुआ कि जिस समय बाबा जयमल सिंह जी को श्री शिवदयाल सिंह जी ने नाम दान किया उस समय शिवदयाल जी साधक थे पूरे संत नहीं हुए थे अधूरे थे।
क्योंकि शिवदयाल जी ने साधना पूरी करके सन 1861 में सत्संग करना प्रारंभ किया उससे पूर्व तो वे अधूरे थे बाबा जयमल सिंह जी ने उपदेश 1856 में 5 वर्ष पूर्व एक साधक से उपदेश ले लिया।

कबीर परमेश्वर कहते हैं 
झूठे गुरुवा काल के दूत हैं, देवे नरक धकेल।
काची सरसों पेल कर, हल हुआ ना तेल।।

शिव दयाल सिंह जी की मृत्यु सन 1878 में 60 वर्ष की उम्र में हुई। श्री जयमल सिंह जी ने श्री शिव दयाल जी की मृत्यु के 11 वर्ष पश्चात 1889 में व्यास नदी के किनारे डेरे की स्थापना करके स्वयंभू संत बनकर नाम देना आरंभ किया। 

झूठे गुरू के आसरे, कदै न उधरे जीव।
सांचा पुरुष कबीर है, आदि परम गुरू पीर।।

इससे सिद्ध है कि राधा स्वामी पंथ काल का फैलाया जाल है। शिव दयाल जी पांचो नाम ( ररंकार, ओंकार, ज्योति निरंजन, सोहं तथा सतनाम) काल के जपते थे  जिससे वे मोक्ष प्राप्त नहीं कर सके।

झूठा गुरू काल है, गुरू का धरया स्वरूप।

जिस पंथ के प्रवर्तक शिवदयाल जी ही अधोगति प्राप्त होकर अपनी शिष्या बुक्की  में भूत वश  प्रवेश होते थे उनके अनुयायियों के साथ क्या बनेगी??

शिवदयाल जी का ज्ञान वेदो और गीता जी के विरुद्ध होने के कारण कोरा अज्ञान है

झूठे गुरू के आसरे, कदै न उधरे जीव।
सांचा पुरुष कबीर है, आदि परम गुरू पीर।।

झूठे गुरु के आश्रय से कभी भी जीव का कल्याण नहीं हो सकता।काल के जाल से बचें और सच्चे संत रामपाल जी महाराज से आकर नाम दीक्षा लीजिए और अपना जीवन सफल बनाइए।।।

राधस्वामी पंथ के प्रवर्तक शिवदयाल जी का कोई गुरु नहीं था

कबीर, झूठे गुरुवा बात बिगाड़ी, काल जाल नहीं जान्या!

राधस्वामी पंथ के प्रवर्तक शिवदयाल जी का कोई गुरु नहीं था, वे निगुरे थे। बिना गुरु उन्होंने शास्त्रविरूद्ध भक्ति साधना की तथा राधास्वामी पंथ की स्थापना करके कोरा शास्त्रविरूद्ध अज्ञान जनता में प्रचारित किया। बिना गुरु धारण किए शास्त्रविरूद्ध भक्ति करने के कारण शिवदयाल जी मृत्यु उपरांत भूत योनि को प्राप्त हुए और अपनी प्रिय शिष्या बुक्की में प्रेतवश प्रवेश करके पहले की तरह ही हुक्का और चूरमा खाने पीने लगे। 

शिवदयाल जी जीवित अवस्था में हुक्का पिया करते थे उनकी जीवनी में लिखा है जबकि कबीर साहेब की वाणी है... "अमल आहारी आत्मा कबहुं न उतरे पार"

उपरोक्त प्रमाण राधास्वामी पुस्तकों (संतमत प्रकाश, सारवचन वार्तिक, जीवन चरित्र स्वामी जी महाराज) में वर्णित है।

नकली गुरुओं की पहचान होती है वह शास्त्र विरुद्ध साधना करते और करवाते है। जिस कारण वे स्वयं भी भूत योनि को प्राप्त होते है और अनुयायियों को भी नरक व चौरासी का भागी बनाते है। यही दशा राधास्वामी प्रमुख शिवदयाल जी की हुई।

परमेश्वर कबीर साहिब की वाणी है।

"सतगुरु पुरुष कबीर है, चारों युग प्रवाण।
झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।।"

परमेश्वर कबीर साहिब की वाणी में प्रमाण है कि बिना सतगुरु के भक्ति करने पर अनमोल मानव जीवन बर्बाद होता है और चौरासी का भागी बनता है। शिवदयाल जी ने भी कोई गुरु धारण नहीं किया था।

गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल हैं, चाहे पूछो वेद पुराण।।
गुरु बिन काहु न पाया ज्ञाना, ज्यो थोथा भुस छडे किसाना।
गुरु बिन मिले मोहे ना पावै, जन्म जन्म बहु धक्के खावै।
गुरु बिन प्रेत जन्म सब पावै, वर्ष सहस्र गर्भ सो रहावै।

राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक शिवदयाल जी अपनी  शिष्या बुक्की में प्रेत वश आते थे...

शिव दयाल जी खुद भूत बने यदि गुरु ही भूत बनेगा तो शिष्य को मुक्ति कहां से दिलाएगा...

कबीर साहेब की वाणी..

सतगुरु पुरुष कबीर है, चारों युग प्रवाण।
झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।।..

शिव दयाल जी का ज्ञान गीता , वेदों पर आधारित नहीं है पूरा ज्ञान शास्त्र विरुद्ध और असत्य है..
यह ज्ञान समाज के लिए बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है..

राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक शिव दयाल जी कहते हैं..
परमात्मा निराकार है

जबकि सारवचन वार्तिक पृष्ठ 8  वचन 12 में लिखा है आत्माएं सतलोक में सत पुरुष का दर्शन करती है यह भी लिखा है कि संत इसी पुरुष का अवतार है तो फिर परमात्मा निराकार कैसे हुए..

इससे सिद्ध है कि राधा स्वामी पंथ के प्रवर्तक शिव दयाल जी को पूर्ण ज्ञान नहीं था..

भगवान कहते हैं..

जब तब गुरू मिले नहीं सांचा, तब तक गुरू करो दस-पांचा।

शिव दयाल जी हुक्का पीते थे जबकि हुक्का पीना महापाप है..

फिर भी शिवदयाल जी हुक्का पीते थे.. क्या यह एक गुरु के लक्षण हो सकते हैं..

कबीर साहेब कहते हैं।..

भांग तंबाकू ,  छूतरा ,आफू, शराब।।
कहे कबीर कैसे करे बंदगी
यह तो करें खराब।।

इन बातों से सिद्ध है शिवदयाल जी पूर्ण गुरु नहीं थे और उनको वेद और गीता जी का संपूर्ण ज्ञान नहीं था.

राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक माने जाने वाले श्री शिवदयाल जी करते थे नशा।

शिवदयाल जी मृत्यु के पश्चात भूत बने थे और अपनी शिष्या बुक्की में प्रवेश करके हुक्का पीते थे और खाना खाते थे।
जानिए पूरी सच्चाई इसी पंथ की पुस्तकों से

राधास्वामी पंथ की पुस्तक "जीवन चरित्र हुजूर स्वामी जी महाराज" के पृष्ठ 54,55,56 में कुछ लेख लिखा है जो कि इस प्रकार है :- "बुक्की नामक शिवदयाल जी की एक शिष्या थी जो शिवदयाल जी के सत्संग वचनों को सुनकर कई घण्टो तक रोती रहती थी।

वह स्वामी जी के चरण में पड़ी रहती थी। स्वामी जी का एक चरण का अंगूठा अपने मुख में लेकर उसके रस का आनंद लिया करती थी। जब कोई स्वामी जी महाराज के चरण छूने के लिए बुक्की जी को उठाना चाहते तो वो चरण को नही छोड़ती थी तब उस भगत को दूसरे चरण को छूने के लिए कह दिया जाता था। (सोचने वाली बात है वर्तमान के राधास्वामी पंथ के गुरु बोलते है कि जो चरण छुआते है वो गुरु नही है जबकि उनके प्रवर्तक खुद चरण छुआते थे। ऐसा क्यों? )
फिर आगे लिखा है कि स्वामी जी के अंतर्ध्यान (मृत्यु ) होने के बाद बुक्की जी अस्वस्थ रहने लगी और कुछ नही खाती थी। लगभग महीने भर यही क्रिया चलती रही फिर एक दिन स्वामी जी ने उन्हें दर्शन दिए और बोले कि तुम ओरो की तरह ही सेवा पेशतर किया करो तब बुक्की जी खुद अपने हाथों से खाना बनाकर मेरी(प्रताप सिंह जी= शिवदयाल जी के भाई) पन्नी गली वाले मकान में पलंग पर खाना और हुक्का भरकर रखती थी।

और फिर स्वामी जी उसमे प्रवेश कर जाते थे तो वो खाना और हुक्का पीती थी।

मैं(प्रताप सिंह जी) जब कभी व्यवसाय में कोई समस्या आती तो बुक्की जी के माध्यम से स्वामी जी से आदेश लिया करता था और वैसे ही करता था।

मतलब है कि बुक्की जी के अंदर स्वामी जी प्रेतवश प्रवेश करके बोलते थे।

ऐसे ही 2-4 बार राय साहब ने भी बुक्की जी के जरिए मौज हासिल की थी।

विवेचन :- 1. क्या हुक्के का सेवन करने वाला नशेड़ी कभी भक्ति कर सकता है।

कबीर साहेब की वाणी में लिखा है कि "अमल आहारी मानव .........."

शिवदयाल ने मरने के बाद बुक्की जी को भी हुक्का पीना सीखा दिया।
खुद का जीवन तो नाश किया ही किया और दूसरों का और कर दिया।

2. बुक्की जी में स्वामी जी प्रेतवश प्रवेश करते थे और प्रताप जी और राय साहब उनसे आदेश लेते थे।

विचार करिए क्या जब गुरु ही भूत बना हो तो उनके अनुयायियों के क्या होगा।
ये बाते करते है सतलोक, सच्चखण्ड की और बने फिर रहे है भूत

क्या ऐसे पंथ और ऐसे गुरुओं से मोक्ष प्राप्त हो सकता है ?

गीता अ. 9 श्लोक 25 में लिखा है कि जो भूतों की पूजा करते है वो भूत बनते है।

शिवदयाल जी का जो हाल हुआ वही उनके अनुयायियों के होगा।