राधास्वामी पंथ | Hindi

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राधास्वामी पंथ शहर आगरा पन्नी गली निवासी श्री शिव दयाल सिंह जी से चला है। राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक श्री शिव दयाल जी का कोई गुरु जी नहीं था।
प्रमाण :- पुस्तक ’’जीवन चरित्र स्वामी जी महाराज’’ पृष्ठ 28 

श्री शिव दयाल सिंह जी ने 17 वर्ष तक कोठे में कोठा अर्थात् बन्द स्थान पर बैठ कर हठ योग किया। जो किसी भी संत की साधना से मेल नहीं खाता।

सन् 1856 में बाबा जयमल सिंह जी ने श्री शिवदयाल जी से उपदेश (नाम प्राप्त) किया। इससे सिद्ध यह हुआ कि जिस समय बाबा जयमल सिंह जी को श्री शिवदयाल सिंह जी (राधास्वामी) ने नाम दान किया। उस समय तक तो श्री शिवदयाल जी साधक थे। पूरे संत नहीं हुए थे, अधूरे थे।

श्री जयमल सिंह जी सेना से निवत हुए सन् 1889 में अर्थात् श्री शिवदयाल सिंह जी (राधा स्वामी) की मत्यु के 11 वर्ष पश्चात् सेवा निवत होकर 1889 में ब्यास नदी के किनारे डेरे की स्थापना करके स्वयंभू संत बनकर नाम दान करने लगे।

शिवदयाल जी (राधास्वामी) के कोई गुरु नहीं थे। श्री जयमल सिंह जी (डेरा ब्यास) ने जिस समय दीक्षा प्राप्त की सन् 1856 में उस समय श्री शिवयाल सिंह जी साधक थे। शिवदयाल जी संत 1861 में बने तब उन्होंने सत्संग प्रारम्भ किया था।

श्री शाहमस्ताना जी का भी पुनर्जन्म हुआ है तो मोक्ष नहीं हुआ। यह कहें कि हंसों को तारने के लिए आए हैं। वह भी उचित नहीं। क्योंकि इनकी साधना शास्त्राविरूद्ध है।

राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक बताते हैं कि परमात्मा निराकर है जबकि सारवचन वार्तिक पृष्ठ 8 वचन 12 में लिखा है कि आत्माएं सतलोक में सतपुरुष (परमात्मा) का दर्शन करती हैं तो फिर परमात्मा निराकार कैसे हुए।

राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक बताते हैं कि परमात्मा निराकार है उसका प्रकाश देखा जा सकता है। 
पर वेदों में साफ़ साफ़ लिखा है कि परमात्मा साकार (नर आकार ) है।

राधा स्वामी पंथ के प्रवर्तक शिवदयाल जी की जीवनी में लिखा है की शिवदयाल जी अपनी शिष्या बुक्की के शरीर में प्रवेश करके हुक्का पीते थे। 
मतलब साफ़ है वो प्रेत वश ऐसा करते थे उनकी मुक्ति नहीं हुई 
जब गुरु की ही मुक्ति नहीं हुई तो दूसरों की कैसे होगी।

परमेश्वर कबीर जी की वाणी है कि -
सोई गुरु पूरा कहावै, दोय अख्खर का भेद बतावै।
लेकिन राधास्वामी पंथ में तो 5 नाम देते हैं।
राधास्वामी पंथ का ज्ञान बिल्कुल शास्त्र विरुद्ध है।

कबीर परमेश्वर कहते हैं-
अमल आहारी आत्मा कबहु न उतरे पार।
और शिवदयाल जी हुक्का पीते थे।