शिवदयाल जी शास्त्र विरुद्ध साधना किया करते थे
आज के समय में मानव समाज शास्त्र अनुसार सद्भक्ति से कोसों दूर है...!! इसका कारण हमारे समाज में बहुत से ऐसे धर्म प्रचारक, गुरु और पंथ है जो शास्त्र विरुद्ध मनमानी साधनाएं करवा रहे हैं इसका बुरा प्रभाव हमारे पर यह हो रहा है कि हमारी साधना करने का न तो हमें कोई लाभ मिल रहा है और न ही हमारी मोक्ष प्राप्ति संभव है।
राधा स्वामी पंथ की कहानी भी कुछ ऐसी ही है..!!!
राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक शिवदयाल जी के बारे में बहुत से ऐसे तथ्य हैं जो यह साबित करेंगे कि वह शास्त्र विरुद्ध साधना किया करते थे। (यह सभी तथ्य शिव दयाल जी के वचनों कि संग्रहित पुस्तकों सार वचन वार्तिक, संतमत प्रकाश आदि से लिए गए हैं)
इनकी जीवनी में लिखा है कि ये 3-4 दिन तक हट योग किया करते थे जबकि गीता अध्याय 3 श्लोक 6 से 9 हठयोग करने को निषेध बताया है..!!!
अर्थात गीता जी में तप करने वाले को पाखंड वाद कहा है।
राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक श्री शिवदयाल जी का कोई गुरु नहीं था जबकि गुरु बिना मोक्ष प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
कबीर साहेब कहते हैं -
गुरु बिन ज्ञान ना उपजे, गुरु बिन मिले न मोक्ष।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मिटे ने दोष।।
राधास्वामी स्वामी पंथ के अनुसार परमात्मा निराकार है। तथा सतलोक में तो केवल प्रकाश ही प्रकाश है तथा मनुष्य भक्ति करने के बाद वहां जाकर ऐसे समा जाता है जैसे बूंद समुद्र में समा जाती है।
जबकि हमारे शास्त्र वेद प्रमाणित करते हैं कि परमात्मा साकार है सशरीर है।
( प्रमाण - यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 1,6,8 यजुर्वेद अध्याय 1 मंत्र 15, ऋग्वेद मंडल 1 सूक्त 31 मंत्र 17)
राधा स्वामी पंथ के प्रवक्ता ने सतनाम को एक स्थान मात्र बताया है जबकि गुरु ग्रंथ साहेब में नानक जी कह रहे हैं कि सतनाम दो अक्षर का मंत्र है।
सोई गुरु पूरा कहावे, जो दो अक्षर का भेद बतावे।
एक छुड़ावे एक लखावे, तो प्राणी निज घर को जावे।।
परंतु इसके विपरीत राधा स्वामी पंथ में तो 5 नाम (ररंकार, ओंकार, ज्योति निरंजन, सोहम और सतनाम)दिए जाते हैं तथा यह पांचों नाम काल के हैं। इनसे किसी प्रकार का सुख और मोक्ष मिल पाना असंभव है।
शास्त्र विरुद्ध तथा बिना गुरु के मनमानी भक्ति करने से शिवदयाल जी का मोक्ष नहीं हुआ तथा वे प्रेत बनकर उनकी शिष्या बुक्की में प्रवेश होकर अपने अनुयायियों की समस्याओं का समाधान करते हैं।
अब यदि शिवदयाल जी खुद मोक्ष प्राप्त नहीं कर सके तो उनके शिष्य इस भक्ति मार्ग से कैसे मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं...!!!!
और शिवदयाल जी अपनी शिष्या बुक्की की में प्रवेश करें हुक्के का सेवन किया करते थे।
संत का काम नाश छुड़ वाना है नशा करना नही।
कबीर साहेब कहते हैं-
"सौ नारी जारी करे,सुरापान सौ बार।
एक चिलम हुक्का भरै, वह डुबे काली धार।।"