राधास्वामी पंथ का ज्ञान बिल्कुल शास्त्रविरुद्ध है
राधास्वामी पंथ आगरा के शिवदयाल जी द्वारा स्थापित एक सुप्रसिद्ध पंथ है।
राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक श्री शिवदयाल जी की जीवनी में लिखा है कि वे हठयोग करते थे व बचपन से ही शब्द योग के अभ्यास में लीन रहते थे।
राधास्वामी पंथ की पुस्तक-जीवन चरित्र स्वामी जी महाराज में लिखा है कि
श्री शिवदयाल जी ने 17 वर्ष तक बन्द कमरें में हठ योग किया जबकी गीता अध्याय 3, श्लोक 6 से 9 तक हठयोग निषेध बताया है। सिद्ध होता है कि शिवदयाल जी शास्त्रविरूद्ध साधना करते थे, उन्हें शास्त्रों का ज्ञान नहीं था।
राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक शिवदयाल जी ने कोई गुरु धारण नहीं किआ था जबकि सतगुरु बिना मुक्ति असंभव है।
कबीर साहेब कहते है कि
“कबीर गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल है, चाहे पूछो वेद पुराण।।”
“गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मिटे न दोष॥”
यही कारण रहा कि वे मोक्ष प्राप्त नहीं कर सके और प्रेत योनी को प्राप्त हो गये और अपनी शिष्या बुक्की में प्रेतवश प्रवेश होकर अपने शिष्यों की शंका का समाधान करते थे।
विचार करें जिस पंथ का प्रर्वतक ही भूत योनि को प्राप्त हुआ हो तो उनके अनुयायियों का क्या बनेगा?
राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक परमधनी हजूर शिवदयाल जी अपनी शिष्या बुक्की जी में प्रवेश होकर हुक्का भी पीते थे।
कबीर साहेब जी की वाणी है।
सौ नारी जारी करै, सुरापान सौ बार।
एक चिलम हुक्का भरै, वह डूबै काली धार।।”
विचार करें आखिर गुरु पदवी पर बैठकर नशे का सेवन करने वाला संत कैसे हो सकता है? समाज को क्या सन्देश दे रहा है?
राधास्वामी पंथ में काल के पांच नाम (ररंकार, औंकार, ज्योति निरंजन, सोहं तथा सतनाम) एक बार में ही दिए जाते है जबकि कबीर परमेश्वर जी की वाणी और गीता जी अध्याय 17 के श्लोक 23 में तीन बार में नाम दीक्षा देने का प्रमाण है।
गुरुनानक जी की वाणी में भी लिखा है..
"सोई गुरु पूरा कहावै, जो दो अक्खर का भेद बतावै।
एक छुड़ावै एक लखावै तो प्राणी निज घर को जावै।"
यानि दो अक्षर/शब्द(सतनाम) का भेद बताने वाले सतगुरु से ही नाम दीक्षा लेकर मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
इससे सिद्ध होता है कि राधास्वामी पंथ द्वारा दिए गए काल के 5 नाम जपने का गीता वेदो पुराण और मोक्ष प्राप्त संतो की वाणियों में कही प्रमाण नहीं है।
राधास्वामी पंथ का ज्ञान बिल्कुल निराधार है। किसी भी मोक्ष प्राप्त संत की वाणी से नहीं मिलता जबकि कबीर साहेब, गुरुनानक देव जी को ये मुख्य रूप से मानते हैं।
इस पंथ में यह भी बताया जाता है कि सतपुरूष/परमात्मा निराकार है।सतलोक में परमात्मा का केवल प्रकाश ही प्रकाश है जबकि हमारे सदग्रन्थ कहते हैं कि परमात्मा सशरीर है, साकार है।
(प्रमाण- यजुर्वेद अध्याय 5, मंत्र 1, 6, 8, यजुर्वेद अध्याय 1, मंत्र 15, यजुर्वेद अध्याय 7 मंत्र 39, ऋग्वेद मण्डल 1, सूक्त 31, मंत्र 17, ऋग्वेद मण्डल 9, सूक्त 86, मंत्र 26, 27, ऋग्वेद मण्डल 9, सूक्त 82, मंत्र 1 - 3) में व अनेकों वेद मन्त्रों में स्पष्ट प्रमाण है कि परमात्मा मनुष्य जैसा नराकार है, राजा के समान दर्शनीय है।
इससे सिद्ध होता है कि राधास्वामी पंथ का ज्ञान बिल्कुल शास्त्रविरुद्ध है।